Dharm Desk/Haridwar Kumbh Mela 2021: आस्था का महाकुंभ इस बार हरिद्वार में लगने जा रहा है।जैसा कि हम सब जानते हैं कि समुद्र मंथन के बाद जिन चार स्थानो पर अमृत की बूंदे गिरी थी वहां वहां कुंभ का मेला लगता है।जहां संत महापुरुषों के सात ही आस्थावान श्रद्धालु विश्वास की डुबकी लगाते हैं। संसार में विश्वास का ऐसा अद्भूत संगम कहीं और देखने को नहीं मिलता है।आस्था की एक डुबकी श्रद्धालूओं के अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा का निरंतर निर्वाह आज भी उसी रुप में होता आ रहा है।
बहरहाल बात कुंभ की हो तो बरबस ही अखाड़ा,परंपरा,नागा जैसे अनेकानेक शब्द और चित्र हमें स्मरण हो आते हैं तो चलिए जानते हैं इन्हीं परंपराओं के बारे में-
‘अखाड़ा’ शब्द ‘अखण्ड’ शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ न विभाजित होने वाला है। आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा हेतु साधुओं के संघों को मिलाने का प्रयास किया था। अखाड़ा सामाजिक व्यवस्था, एकता और संस्कृति तथा नैतिकता का प्रतीक है।इस प्रकार से समाज में आध्यात्मिक की स्थापना करना ही अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य है।
जगदगुरु शंकराचार्य का प्रादुर्भाव
ऐसा प्रमाण मिलता है कि नवीं शताब्दी में जगदगुरु आद्यगुरु शंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव हुआ था। जिन्होंने दो बार संपूर्ण देश का भ्रमण किया और अपने दार्शनिक सिद्धांत अद्वैतवाद का प्रचार करते हुए वैदिक सनातन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की और जगतगुरु कहलाये।
जगद्गुरु ने लोकहित में वैदिक धर्म की धारा को अविरल बहाते हुए देश की चारों दिशाओ में चार मठ – ज्योतिर्मठ, श्रृंगेरीमठ, शारदामठ तथा गोवर्धन मठ की स्थापना की।इतना ही नहीं सनातन धर्म के सरंक्षण और संचालन के लिए पारिवारिक बंधन से मुक्त, नि:स्वार्थ भाव से चलाने के लिए नागा साधुओं/संन्यासियों का पुनर्गठन किया साथ ही धार्मिक संगठनो में व्यापक अनुशासन बना रहे इसके लिए दशनाम संन्यासी प्रणाली की शुरूआत की। इसका विधान “ मठाम्नाय” नाम से अंकित किया।
संन्यासियों के संघों में दीक्षा के बाद संन्यासी द्वारा जो नाम ग्रहण किये जाते है, तथा उनके साथ जो इस शब्द जोड़े जाते है उन्ही के कारण दशनामी के नाम से संन्यासी प्रसिद्ध हुए और उनके ये दस नाम जिन्हें योग पट्ट भी कहा जाता है, प्रसिद्ध हुए। संन्यासियों के नाम के आगे जोड़े जाने वाले ये योग पट्ट शब्द है – गिरी ,पुरी, भारती, वन, सागर, पर्वत, तीर्थ, अरण्य, आश्रम, जन और सरस्वती.
आचार्य शंकर द्वारा रचित “मठाम्नाय” ग्रन्थ के अनुसार साधु समाज के संघों के पदाधिकारियों की व्यवस्था इस प्रकार से की गई है…
(1) तीर्थ (2) आश्रम (3) सरस्वती (4) भारती (5) वन (6) अरण्य (7) पर्वत (8) सागर (9) गिरि (10) पुरी
दशनामी परंपरा के विभिन्न पीठ
आदि शंकराचार्य ने हर दशनामी परंपरा को विभिन्न पीठों से जोड़ा-
सरस्वती, तीर्थ, अरण्य, भारती – शृंगेरि शारदा पीठम्
तीर्थ, आश्रम – द्वारका पीठ
गिरि, पर्वत, सागर – ज्योतिर्मठ
वन, पुरी, अरण्य – गोवर्धनपुरी मठ
संन्यासियों के विभिन्न पद
तीर्थ- तत्वमसि आदि महाकाव्य त्रिवेणी – संगम – तीर्थ के सामान है जो संन्यासी इसे भली-भांति समझ लेते है, उन्हें तीर्थ कहते हैं।
आश्रम- जो व्यक्ति संन्यास-आश्रम में पूर्णतया समर्पित है, और जिसे कोई आशा अपने बंध में’ नहीं बांध सकती वह व्यक्ति आश्रम है।
वन- जो सुन्दर एकाकी, निर्जन वन में आशा बंधन से अलग होकर वास करते है, उस सन्यासी को “ वन “ कहते है।
गिरी- जो संन्यासी वन में वास करने वाला एवं गीता के अध्ययन में लगा रहने वाला, गंभीर, निश्चल बुद्धि वाले सन्यासी “गिरी” कहलाते है।
भारती- जो संन्यासी विद्यावान, बुद्धिमान है, जो दुःख कष्ट के बोझ को नहीं जानते हैं या घबराते नहीं वे संन्यासी “भारती” कहलाते हैं।
सागर- जो संन्यासी समुद्र की गंभीरता एवं गहराई को जानते हुऐ भी उसमे डुबकी लगाकर ज्ञान प्राप्ति का इच्छुक होते है, वे संन्यासी सागर कहलाते है।
पर्वत- जो संन्यासी पहाड़ों की गुफा में रहकर ज्ञान प्राप्त का इच्छुक होते है, “पर्वत” कहलाते है।
सरस्वती-जो संन्यासी सदैव स्वर के ज्ञान में निरंतर लगे रहते हैं और स्वर के स्वरुप की विशिष्टविवेचना करते रहते हैं तथा संसाररूपी असारता अज्ञानता को दूर करने में लगे रहते हैं, ऐसे संन्यासी सरस्वती कहलाते है।
अरण्य-अरण्य के ऋषि हैं कश्यप। ये नामधारी संन्यासी जगन्नाथ पुरी स्थित गोवर्धन पीठ के साथ जुड़े हैं।
पुरी-ये नामधारी संन्यासी भी जगन्नाथ पुरी स्थित गोवर्धन पीठ के साथ जुड़े हैं।
जाने अखाड़े और उनके क्या हैं विधान
दशनामी साधु समाज के 7 प्रमुख अखाडों का विवरण श्री यदुनाथ सरकार द्वारा लिखित पुस्तक “नागा संन्यासियों का इतिहास” में मिलता है।इनमें से प्रत्येक अखाड़े का अपना स्वतंत्र संगठन है, इनका अपना निजी लावाजमा होता है, जिसमे डंका, भगवा निशान, भाला, छडी ,वाध, हाथी, घोड़े, पालकी आदि होते है. इन अखाडों की सम्पति का प्रबंध श्री पंच द्वारा निर्वाचित आठ थानापति महंतो तथा आठ प्रबंधक सचिवों के जिम्मे रहती है। इनकी संख्या घट बढ़ सकती है।
जानिए अखाड़ों की स्थापना और विवरण के बारे में-
श्री पंचायती अखाड़ा महनिर्वाणी
दशनामी साधुओ के श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना माह अगहन शुक्ल दशमी गुरुवार विक्रम संवत 805 को गढ़कुंडा (झारखण्ड) स्थित श्री बैजनाथ धाम में हुई। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र दारा गंज प्रयाग (इलाहाबाद ) में है. इस अखाड़े के इष्ट देव राजा सागर के पुत्रो को भस्म करने वाले श्री कपिल मुनि है। इसके आचार्य मेरे दीक्षा गुरु ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर श्रीश्री 1008 स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज थे, जिनका एक सड़क दुर्घटना में वर्ष 2013 में महाप्रयाण हो गया था। सूर्य प्रकाश एवं भैरव प्रकाश इस अखाड़े की ध्वजाए है। जिन्हें अखाड़ों के साधु संतो द्वारा देव स्वरुप माना जाता है। दशनामी अखाड़ो में इस अखाड़े का प्रथम स्थान है।
श्री पंच दशनामी जूना अखाड़ा
दशनामी साधु समाज के इस अखाड़े की स्थापना कार्तिक शुक्ल दशमी मंगलवार विक्रम संवत 1202 को उत्तराखंड प्रदेश में कर्ण प्रयाग में हुई। स्थापना के समय इसे भैरव अखाड़े के नाम से नामंकित किया गया था. बहुत पहले स्थापित होने के कारण ही संभवत: इसे जुना अखाड़े के नाम से प्रसिद्ध मिली। इस अखाड़े में शैव नागा दशनामी साधूओ की जमात तो रहती ही है परंतु इसकी विशेषता भी है की इसके निचे अवधूतानियो का संघटन भी रहता है इसका मुख्य केंद्र बड़ा हनुमान घाट ,काशी (वाराणसी) है। इस अखाड़े के इष्ट देव श्री गुरु दत्तात्रेय भगवान है जो त्रिदेव के एक अवतार माने जाते है।
तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा
दशनामी तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़े’ की’ स्थापना’ माह शुक्ल चतुर्थी रविवार विक्रम संवत 912 कोबरार प्रदेश में हुई। इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान श्री सूर्यनारायण है तथा इसके आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री देवानंद सरस्वती जी महाराज हैं।अध्यक्ष श्री महंत सागरानन्द जी एवं महंत शंकरानंद जी है। इस अखाड़े का प्रमुख केंद्र कपिल धारा काशी (बनारस ) है। इस अखाड़े के केंद्रीय स्थान (कपिल धारा) के प्रमुख सचिव श्री महंत कन्हीयापूरी जी एवं श्री महंत चंचलगिरी है।
श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना माह ज्येष्ट कृष्णपक्ष नवमी शुक्रवार का विक्रम संवत 603 में हुई। इस अखाड़े के इष्टदेव सिद्धगणपति भगवान है।इसका मुख्य केंन्द्र दशाशवमेघ घाट काशी (बनारस) है। यह अखाड़ा श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामीश्री शिवेंद्र पूरी जी महाराज तथा सचिव श्रीमहंतशिव शंकर जी महाराज एवं महंत प्रेमपुरीजी महाराज है।
तपो निधि श्री निरंजनी अखाड़ा पंचायती
दशनामी साधुओ के तपोनिधि श्री निरंजनी अखाड़ा पंचायती अखाड़ा की स्थापना कृष्ण पक्ष षष्टि सोमवार विक्रम सम्वत 960 को कच्छ (गुजरात) के मांडवी नामक स्थान पर हुई। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र मायापूरी हरिद्वार (है )। इस अखाड़े के इष्ट देव भगवान कार्तिकेय है।
पंचायती अटल अखाड़ा
इस अखाड़े’ की स्थापना माह मार्गशीर्ष शुक्ल ४ रविवार’ विक्रम संवत 703 को गोंडवाना में हुई। इस अखाड़े के इष्टदेव श्री गणेश जी है।