श्री शुभ संवत 2077 मासानाम मासोत्तमे मासे कार्तिक मासे शुक्ल एकादशी दिन बुद्धवार दिनांक 25-11-2020 को सायं 6:34 मिनट तक है।
देव उठवनी एकादशी और प्रवोधनी एकादशी का महत्व
नारद जी ने बताया था और नारद से कार्तिक मास में इस एकादशी के व्रत का पालन करने को कहा था। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि इस व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से सौ गायों के दान करने का पूण्य फल प्राप्त होता है।
देव उठवनी एकादशी पूजा व्रत विधि
देव उठवनी एकादशी के जिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्म स्नान आदि करना करना चाहिए।सूर्योदय से पूर्व ही व्रत का संकल्प लेकर पूजा करके सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।एकादशी के दिन गंगा में स्नान करना चाहिए।देव उठवनी एकादशी या प्रवोधनी एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी विवाह का भी महत्व है।इस दिन गन्ना की झोपड़ी बनाकर पूजा करते हैं। मौसमी सभी प्रकार के फल की पूजा एकादशी को की जाती है।इस दिन श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करना चाहिए और भजन किर्तन करके रात्रि जागरण करना चाहिए।इसके बाद भगवान विष्णु को शंख,घंटा,मृदंग आदि बजाकर उठाना चाहिए और अंत में कथा का श्रवण कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
देव उठवनी एकादशी की कथा
एक समय की बात है. एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखा करते थे. यहां तक कि राज्य के पशु भी इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करते थे. तभी उस राज्य में एक दूसरे राज्य से एक व्यक्ति आया. उसने कहा हे राजन! मुझे काम की आवश्यकता है. यदि मुझे आप नौकरी पर रख लें तो आपका बहुत आभार होगा.
राजा ने कहा ठीक, मैं तुम्हें नौकरी जरूर दूंगा, लेकिन एक शर्त माननी होगी. शर्त यह है कि इस राज्य में एकादशी व्रत करने की अनिवार्यता है, जिसका तुम्हें भी पालन करना होगा. इस दिन तुम अन्न ग्रहण नहीं कर सकते. व्यक्ति ने कहा कि मुझे आपकी शर्त मंजूर है.
कुछ दिनों बाद एकादशी आई और राज्य के सभी लोगों के साथ उस व्यक्ति ने भी एकादशी का व्रत किया. लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरता गया, उस व्यक्ति की भूख तेज होती चली गई. वह राजा के पास पहुंचा और राजा से कहने लगा कि हे राजन सिर्फ फल से मेरा पेट नहीं भर रहा है और मैं अन्न खाना चाहता हूं, अन्यथा मैं मर जाऊंगा.
यह सुनकर राजा ने उसे अन्न दे दिया. वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा. जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है.
बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे. भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया.
अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए. उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया. राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं. इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता.
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं. मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए और तुम्हें दे दिए. ऐसा कैसे संभव है.
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें. राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान नहीं आए. अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा.
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा. प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे. खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए.
यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. इसलिए व्रत के साथ यह भी जरूरी है कि अपना मन शुद्ध रखा जाए. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगे और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुए।इस प्रकार से कथा श्रवण कर अगले दिन पारण संपन्न करें।
द्वादशी दिन गुरुवार 26-11-2020 को सूर्योदय से 9.36 मिनट तक एकादशी पारण करने का विधान है।उसी दिन वैष्णव जन एकादशी व्रत कर सकते है जबकि 25 नवम्बर को गृहस्थों के लिए एकादशी व्रत करने का विधान है।
श्रीहरि भगवान विष्णु आप सभी का कल्याण करें व आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें। ज्योतिर्विद पंडित शिव कुमार शुक्ल
नोट-आप ज्योतिर्विद पंडित शिव कुमार शुक्ल जी से अपनी कुंडली से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी या ज्योतिषिय सलाह या सुझाव के लिए संपर्क कर सकते हैं।संपर्क सूत्र-9810662037