धर्म डेस्क - दीपावली के दूसरे दिन होती है गोवर्धन पूजा।जिसे देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ साथ अन्नकूट की भी पूजा होती है। हमारे देश में हर एक त्यौहार अपने साथ लेकर आता है ढेर सारी खुशियां।परिवार,समाज , देश और दुनियां में ये खुशियां बरकरार रहे।इसके लिए कामनाएं की जाती हैं। गोवर्धन पूजा का ये पर्व जुड़ा है हमारी धार्मिक आस्था और सर्वजनहिताय की भावना से। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पर्व मनाया जाता है।इसी दिन बलि पूजा, अन्नकूट और मार्गपाली उत्सव मनाए जाते हैं।
अन्नकूट और गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद व्दापर युग से आरम्भ हुई।इस दिन गाय ,बैल पशुओं को स्नान करा के उनकी पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा यानि की प्रकृती की पूजा।आज के दिन पशुओं की पूजा की जाती है और खासकर गाय की पूजा करने का विशेष विधान है।गाय को देवी लक्ष्मी मां का रूप माना गया है।जैसे देवी लक्ष्मी मां हम सबको सुख समृद्धि प्रदान करती है।उसी तरह गौ मात भी अपने दूध से हमें स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती है।
गोवर्धन पूजन पर्व तिथि व मुहूर्त 2020
गोवर्धन पूजा 2020
गोवर्धन पूजा पर्व तिथि - रविवार, 15 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त - दोपहर बाद 03:17 बजे से सायं 05:24 बजे तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 10:36 (15 नवंबर 2020) से
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक
गोवर्धन पूजा के नियम की बात करें तो पूजा के लिए गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। जल,मौली, रोली चावल,दही के साथ तेल का दीपक जलाकर इनकी पूजा और अराधना की जाती है।कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को भगवान श्री कृष्ण को नैवेद्य और भोग लगाया जाता है।अन्न से बने कच्चे और पक्के भोग ,मिठाईंयां भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
अन्नकूट जिसका मतलब है अन्न का ढेर।भागवत पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन पूजा को पूरे परिवार ,मित्रों के साथ मिलकर करता है।उसका घर हमेशा अन्न और धन से भरा रहता है।उस घर में कोई कमी नहीं आती।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में हर त्यौहार मनाने की पीछे इतिहास या धार्मिक महत्व जुड़ा होता है उसी तरह गोवर्धन पूजा से भी जुड़ी है धार्मिक और प्राचीन कथा।एक बार इन्द्र को इस बात का अहंकार हो गया था कि वो ही बारिश करवाते हैं,उन्हीं से जनसामान्य का जीवन यापन होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव को एहसास करवाया कि वो ऐसा करके कोई कृपा नहीं करते।ये तो उनका कर्तव्य है जो भगवान ने उन्हें सौंपा है और प्रकृती का संतुलन बनाए रखने के लिए ये बेहद जरूरी है।इन्द्रदेवता के अहंकार को भगवान कृष्ण ने तोड़ा और इन्द्र की पूजा को बंद करके उसके स्थान पर गोवर्धन की पूजा का प्रारम्भ किया। साथ ही श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों के इस भ्रम को भी दूर किया कि गोवर्धन पूजा के दिन इन्द्रदेवता की पूजा पर ही हमारी खेती निर्भर है और इन्द्र देवता ही वर्षा करके उनके खेतों में अन्न पैदा करते है और उनके पशुओं को चारा मिलता है।श्रीकृष्ण ने गोवर्धन रूप धारण कर ये पूजा स्वयं ग्रहण की ,जिससे इन्द्रदेव कूपित हो गए और मुसलाधार वर्षा की।तब नंद के लाल श्रीकृष्ण ने सभी ब्रजवासीयों, गोप गोपियों, पशु पक्षियों को बचाने के लिए उनके प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सबसे छोटी ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और लोगों को इस मुसलाधार वर्षा से निजात दिलवाई और इन्द्र के अहंकार को तोड़ा।योगेश्वर श्रीकृष्ण के स्मरण के लिए गोवर्धन पूजा का ये दिन बेहद खास है।
ये पर्व हमें प्रकृति की रक्षा करने का भी संदेश देता है।श्री कृष्ण प्रकृति प्रेमी थे।इन्द्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे यही मकसद था कि ब्रजवासी प्रकृति से प्रेम करें और अपने पर्यावरण को बचाएं।उसकी रक्षा करें।तभी जीव और जीवन दोनो की रक्षा हो सकेगी।
एक तरफ जहां ब्रज में गोवर्धन पूजा की धूम मची रहती है। वहीं आज के दिन ब्रज में दूध का अर्घ्य दिया जाता है। गोवर्धन पूजा का नियम है कि इस दिन गोवर्धन पूजा जरूर करनी चाहिए। जिस भी तरह से आप पूजा करें।श्री कृष्ण खुश हो जाते हैं।भगवान श्री कृष्ण खुद आ कर आपकी अराधना,पूजा को स्वीकार करते हैं।लोग अपने गोधन की पूजा करते हैं और गोवंश की सुरक्षा करने का प्रण लेते हैं। सब्जियों और अन्न को मिलाकर अन्नकूट बनाया जाता है।भगवान को भोग लगाकर सभी को प्रसाद बांटा जाता है।इस पर्व को मनाने से गौमाता का तो कल्याण होता ही है।गोवर्धन पूजा से पुत्र,पौत्रादि को सुख की प्राप्ति होती है।
कहते हैं कि जो गोवर्धन पूजा के दिन खुश रहता है।वो पूरे साल खुश रहता है।.गोवर्धन , अन्नकूट से आपके घर भरे रहें।आप खुशहाल जीवन जिए और श्रीकृष्ण जी आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।हम यही कामना करते हैं।