संदीप कुमार मिश्र : हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है,उसके बाद समस्त देवी-देवताओं की पूजा की जाती है फिर कार्य को प्रारंभ किया जाता है।अब चाहे नए घर की पूजा हो,दुकान में पूजा हो,शादी-विवाह हो या अन्य किसी भी प्रकार के उत्सव या शुभ कार्य...हर प्रकार के कार्य को शुरु करने से पहले लंबोदर भगवान श्री गणेश की आराधना पूजा सबसे पहले की जाती है। तभी तो हम सब श्रीगणेशाय नम: कहकर या लिखकर नए कार्य का श्रीगणेश करते हैं।
गणेश चतुर्शी की शुरुआत 25 अगस्त से और समापन 5 सितंबर2017
प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी गणेशोत्सव की धूम देश भर में रहेगी.जिसकी शुरुआत 25 अगस्त से हो रही है और 5 सितंबर तक चलेगी। गणेश चतुर्थी में भगवान श्रीगणेश जी की पूजा अर्चना बड़े ही भक्ति भाव से की जाती है।
क्यों की जाती है सबसे पहले श्रीगणेश की पूजा
दरअसल सिर्फ गणेश चतुर्थी पर ही नहीं, बल्कि सभी प्रमुख तीज त्योहारों पर पूजा की शुरुआत गणेश जी की आराधना से ही होती है।इसके पीछे सबसे बड़ी मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से किसी भी शुभ कार्य में किसी भी प्रकार की कोई विघ्न, बाधा नहीं आती है और कार्य सकुशल संपन्न हो जाते हैं।
क्या है भगवान गणेश की पूजा की पौराणिक कथा
एक कथा के अनुसार सभी देवताओं में इस बात को लेकर विवाद होने लगा कि सबसे पहले किसकी पूजा की जानी चाहिए,और कौन है सर्वश्रेष्ठ।सभी देवगण स्वयं को सर्वेश्रेष्ठ बताने लगे। तभी नारद जी वहां पहुंचे और पूरी स्थिति को समझकर सभी देवताओं को आदिदेव महादेव भगवान शिव की शरण में जाने को कहा।जिस संबंध में भगवान शिव ने कहा कि वो जल्द ही इस पूरे मामले को एक प्रतियोगिता के जरिए सर्वश्रेष्ठ का फैसला करेंगे।
योगीराज महादेव भगवान शिव ने प्रतियोगिता आयोजित की।जिसके अनुसार सभी देवों को अपने वाहन पर सवार होकर उन्हें ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर आने को कहा गया।जो भी देवता सबसे पहले चक्कर लगाकर आएगा उसकी जीत होगी और सबसे पहले उसी की पूजा होगी।
अपने वाहन में सवार होकर सभी देव निकल पड़े ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने।जबकि गणेश जी अपने वाहन पर सवार नहीं हुए। वे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के बजाए अपने माता-पिता यानि की भगवान शिवजी और माता पार्वती के चक्कर लगाने लगे।माता पिता की भगवान श्रीगणेश ने सात बार परिक्रमा करके, हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
ऐसे में जब सभी देवता थक के चूर होकर ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर वापस लौटे तो उन्होंने गणेशजी को वहीं खड़ा हुआ पाया जहां प्रतियोगिता प्रारंभ होने से पहले देखा था।अब बारी थी परिणाम की।जिसमें तनिक भी देर किये बीना भोलेभंडारी भगवान शिवजी ने तुरंत गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया। जिसपर जब अन्य देवों ने वजह पूछी तो महादेव ने कहा कि, संपूर्ण ब्रह्माण्ड में माता-पिता को सबसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। माता-पिता की पूजा करना ही सबकुछ है।संसार में उनसे बढ़कर दूसका कोई नहीं।इस पर सभी देवों ने भगवान गणेश की बुद्धि और विवेक की सराहना की और उन्हें देवों में अग्रगण्य का खिताब मिला और गणेशजी की पूजा सबसे पहले की जाने लगी।
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